Subscribe Us

Header Ads

पुरुषवादी सोच है महिला लॉकडाउन

 
पुरुषवादी सोच है महिला लॉकडाउन  की  वजह  - 
विश्व की आधी आबादी और समाज में संतुलन कायम रखने वाली, शांत रह कर सब सुनने वाली | पुरुष को जन्म देने  वाली स्त्री को पुरुषवादी सोच ने सदियों से किया लॉकडाउन | जिसकी जड़े काफी पुरानी है | आज जब विश्व के १९८ देश कोरोना वायरस की चपेट में आ चुके है | प्रत्येक व्यक्ति इससे संक्रमित होने से आपने आप  को बचाने लिए प्रयासरत है |जबकी संक्रमण से बचने  का अनेक देशो के पास केवल एक विकल्प देख रहा है | जिसे लॉकडाउन नाम दिया गया है | इस व्यवस्था के तहत लोगो को घर के अंदर कैद करके रखा जाता है | जिसके परिणाम यह देखने को मिले है  कि व्यक्ति के तार बाहरी दुनियां से टूट जाते है | जिसे समान्यतौर पर सोशल डिस्टेंस के रूप में जाना जाता है | जिसका मुख्य उददेश्य लोगो के बीच फ़ैल रहे  कोरोना वायरस के संक्रमण के चैन को तोड़ाना  अथवा उस पर रोक लगाना है | मानव  जीवन पर सिका जो नकारात्मक प्रभाव पड़ता है  उसके तहत  व्यक्ति  घर में कैद होने की लिए  तैयार हो  जाता है |  लेकिन सदियों से जो  महिलाओ को  पितृसत्ता नामक सोच ने जो  लॉकडाउन किया है | उसकी  बात  नही की जा रही है |  ऐसे में महिला  के लॉकडाउन की बात उठना लाजमीय है |


द सेकेण्ड सेक्स में फ्रांसीसी लेखिका सिमोन द बोव्हुआर ने फ्रांसीसी भाषा में लिखी अपनी पुस्तक अग्रेजी में कहा नारी जन्म नही लेती बल्कि बनाई जाती है |


भारतीय सामाजिक संरचना में हासिए पर स्त्री विमर्श - 

भारतीय समाज में महिला की स्थितिय को लेकर अन्त :विरोध है | एक तरफ तो नारी को देवी के रूप में निरुपित किया गया | वही दूसरी तरफ उसे अबला माना गया | समान्यत: दो धारणाए प्रचलित थी इसे आप स्त्रियों के लिए लक्ष्मण रेखा कह सकते है |  शुध्दता का पर्याय देवी एवं अशुध्दता का पर्याय कुल्टा इन्ही दो खेमो में स्त्री को समेट कर रख दिया गया | स्त्री विमर्श एक स्त्री के मनुष्य होने की लड़ाई या सोच पर आधारित है | पुरुषो ने महिलाओ को सदियों से एक भोग की वस्तु के रूप में निरुपित किया है | या यू कहे की नारी को पुरुष ने एक शरीर के रूप में ही देखा है | जिसके कारण वह समाज में हमेशा उत्पीड़ना , भेद , शोषण का शिकार हुई या तो उनको देवी कहकर उनकी उपेक्षा की गई अथवा कुल्टा कहकर उसका तिरस्कार किया गया | महिला एक मानव के रूप में कभी नही देखी गई जिसको लेकर  समाज   में  इसका  जोरदार विरोध  किया गया |अनेक देशो के अनेको नारी वादी चिंतको ने इस पर कोठारा घात किया गया | स्त्री को पुरुष का अर्द्ध भाग माना गया जो यह प्रदर्शित करता है की स्त्री अपने आप  में  पूर्ण नही बल्कि स्त्री  पुरुष का अर्ध भाग है |  जबकि पुरुष को समाज में पूर्ण माना गया | कुछ लोगो का तो यहाँ तक मानना है की ' महिलाए बच्चा पैदा करने की मशीन मात्र  है | ' जिनको देवी कहकर पवित्रता का स्वाग रचकर उनको परम्पराओ , रीति - रिवाजो , मूल्यों अथवा कहे संस्कारो में बांध दिया गया | कौटिल्य ने तो यहाँ  तक कहा है  की एक महिला की  काम इच्छा की पूर्ति  कई पुरुष भी मिलकर नही  सकते  | वही यूरोप में प्लेटो ने तो महिला को भोग की वस्तु बनाने में कोई कसर नही छोड़ी उसने तो स्त्री को स्वास्थ्य बच्चा पैदा करने वाली मशीन ही माना लिया  | 


पूर्व प्रधानमंत्री नेहरूजी ने कहा था कि यदि समाज का विकास करना है  तो महिलाओं का विकास करना होगा महिलओं का विकास होने पर समाज का  विकास अपने आप हो जाएगा |




पुरुषवादी समाज में स्त्री विमर्श
भारत में ही नही विश्व के अनेक देशो में सेक्स वर्क का कार्य दिनदहाड़े चलाये जाते है |  कही कही तो ऐसे  भी प्रमाण देखने को मिलते है | कि युध्द के  दौरान ऐसा भी देखने को मिला है की  जब एक राजा  दूसरे राज्य पर आक्रमण करता है | तो उस राज्य की महिलाओ को भी युध्द में जीत लेता था | विजुगेशु राजा उस राज्य के महिलाओ के साथ जबरदस्ती अमानवीय व्यवहार किया करता था | भारत में ऐसे अनेको युध्द के प्रमाण है | जब राजा ने केवल स्त्री की चाह मात्र की पूर्ति हेतु किन्ही  दुसरे राज्य पर आक्रमण किया |
भारत के विश्वविख्यात दो  महाकाव्य  रामायण और महाभारत उसके  श्रेष्ठ  उदाहरण जो स्त्री को ही आधार बनाकर लड़े गये | भारतीय पुरुष प्रधान समाज में स्त्री को सम्पत्ति के रूप में निरुपित किया गया | जिन्हें  लोग जुवे में दाव पर लगा दिया करते थे | उस समय महिलाओ को सम्पत्ति के रूप में ही देखा जाता है | समय के साथ इसमें बदलाव हुए है |  मनुस्मृति में तो यहाँ तक कह दिया गया की स्त्री को जीवन की प्रत्येक अवस्था में पुरुष के  अधीन रहना चाहिए | , कभी पिता के अधीन , तो कभी पुत्र के अधीन , कभी पति के अधीन महिलाओ को सर्वत्र पुरुष के संरक्षण में रहने की बात कही  | समाज ने महिला को हमेशा महिला को एक सांचे के रूप में ही देखा गया| महिलाओ को  प्राचीन  समय  से  ही  या तो  किस की पत्नी  माना गया  या  फिर किसी की वैश्या अथवा रखैल  कहा गया  | तुलसीदास ने यहाँ तक लिखा है की  - ढोल , गवार , शुद्र , पशु , और नारी को ताड़ने के अधिकारी अर्थात् यह सभी  नीच जाति के लोग अथवा मंद बुध्दी के होते है , जानवर, और नारी जो  शारीरिक एवं मानसिक रूप से कमजोर होती है | अत : दंड देकर सही मार्ग पर लाना चाहिए क्योकि यह अपना भला बुरा नही समझते है |

प्रभा खेतान ने अपनी पुस्तक स्त्री उपेक्षा में कहा है की स्त्री अमीर हो अथवा गरीब , काली हो या गोरी उसे अपनी लड़ाई खुद लड़नी होगी |  



पहचान के संकट से जुझती रही  - स्त्री का न कोई अपना नाम है न ही उसकी कोई अपनी पहचान | हर कालखंड में स्त्री को छिना गया | , लुटा गया  , अपनाया गया , धितकारा गया |  स्त्री  प्रत्येक काल में अपने  वजूद के लिए लडती रही | एक उसका अपना कहने को उसका अपना  चेहरा  था | उसे पर  भी पाबंदिया लगा दिया गया | पर्दा प्रथा , देह व्यापार ने बची कुची कसर भी पूरी कर दिया | पुरुषवादी समाज में महिला को घर की इज्जत कहा गया और अंततः  उसी की  इज्जत को बाजार में निलाम किया गया | स्त्री के जान की परवार किसे थी | समाज को तो अपने कुल का दीपक चाहिए था | एक स्त्री को पुरुष ने दो दो रूपों में  देखा |  पहले कामवासना की पूर्ति करने वाली वास्तु के रूप में | तो दुसरे अपने कुल के चिराग को जन्म देने वाली महिला के रूप में  | स्त्री की परवाह किसे थी | स्त्री को सदैव से ही भारतीय समाज में एक समिति क्षेत्र तक रखा गया | प्राचीन - आधुनिक काल तक परम्परागत ,रीति - रिवाजो ,मूल्यों  के आधार पर उनको घर की चारदिवारी में कैदकर दिया गया | 

विवेकानंद ने कहा था कि स्त्री की दशा में सुधार  लाए बिना विश्व का कल्याण नही हो सकता क्योकि चिड़िया एक पंखों से उडान नही भर सकती |
सदियों से अवैतनिक के रूप में एक नौकरानी बनकर रहने वाली स्त्री | पाई पाई के लिए  पुरुष  पर आश्रित रहने वाली स्त्री | जिसकी वजह से  पुरुष के अधीन बनी रही  | या यू कहे की  सम्पति पर पुरुष का अधिकार  रहा | जिसकी वहज से  महिलाओ पुरुष के अधीन बनी रही  |  
भारत की पूर्व राष्ट्रपति  प्रतिभा देवी पाटिल -
हटा दो बाधाए सब मेरे पथ की 
मिटा दो आशाए सब मेरे मन को 
जमाने के बदलने की शक्ति को समझो 
कदम से कदम मिलकर चलने दो हमको 




                             
स्त्री नही वस्तु की तलाश करता पितृसत्ता - 
प्रत्येक पुरुष को एक ऐसे स्त्री चाह होती है जो संस्कारी हो | शुध्दता का पर्याय हो | जो अपनी शुध्दता का परीक्षण देने के लिए तैयार रहे | चेहरों पर घुघट लगाती हो |  लम्बे लम्बे बालों को रखती है | जो कुरूप  नही अतिसुन्दर हो | कदपिय साज - सिंगार करके पति को खुश कर सके  | कम बोलती हो | सुनना उसकी आदत हो या यु कहे अपने अधिकारों के प्रति सजग न हो  | उन्हें तो खूटे  में बधे गाय की चाह है  | जो भोली हो | खाकर किसी कोने में पड़ी रहे | बोलने पर बोले नही तो चुपचाप कही किसी  कोने में  पड़ी रहे | मार खाने  पर भी उफ़ न करे | जब जरुरत हो  | जिधर हो  उधर की ओर खड़ी मिले  | जब चलने को कहा जाए तो चलना शुरू कर दे | प्रत्येक पुरुष को सीता के समान नारी चाह है | जो हर कठिन परिस्थितिय में  साथ खड़ी रहे | ,  कधे से कधा मिलाकर साथ चले  | एक बार कहने पर १४ वर्ष के बनवास के लिए तैयार हो जाए | जो प्रश्न न करे केवल सुनने की आदि हो  | कर्म काण्ठ में निपूर्ण हो और समय आने पर अपने सतीत्व की परीक्षा भी दे  | भले ही  पति कही से मुह मार के आए | 


नारी हूँ
नीर बहाना मेरी पहचान नहीं
सदियों से घूूूंघट से पहचानी गयी
मैं इससे अनजान नहीं |

जकड़ी गयी परम्पराओं की जंजीरों से
जिसकी मैं हकदार नहीं
अभी भी चेतो दुनियां वालों

पितृसत्तात्मक सोच की आग में आखिर क्यों जले स्त्री |  सदियों से पुरुष ने महिलाओ को लॉकडाउन करके रखा है | जिसके जिम्मेदार पुरुष नही बल्कि वह पुरुषवादी सोच है | महिला लॉकडाउन से मुक्ति का सबसे अच्छा तरीका पुरुषवादी सोच में बदलाव है | जिसके कारण महिलाए सदियों से गुलाम बन कर रही है | इसलिए जरुरत उस सोच में बदलाव की |

Post a Comment

0 Comments