बिहार राज्य में नवादा शहर से लगभग 20 km दूर बसा हुआ एक सुन्दर गांव है। यह गोविंदपुर प्रखंड के सरकंडा पंचायत में आता है। यह गांव प्रकृति की गोद में बसा हुआ है।
गोविंदपुर से इस बाजार की दुरी लगभग 8km है। एक तरफ सकरी नदी और दूसरी तरफ पहाड़ों की लंबी स्रिंखलाएँ हैं। यहाँ की जनसँख्या लगभग 2000 है। यहाँ की अधिकतर आबादी कृषि पर निर्भर है। यहां की मिट्टी बहुत ही उपजाऊ है। यहां धन और गेहूं के साथ - साथ शब्जियों और दाल की भी खेती होती है। यहाँ खेत छोटे छोटे हैं इसलिए यहाँ परंपरागत खेती होती है। यहाँ का मुख्य बाजार गोविंदपुर है। खरीदारी और बिक्री के लिए यहाँ के लोग गोविंदपुर बाजार ही जाते
देल्हुआ का इतिहास स्वर्गीय चेतु राम जी की जुबानी......
बात उन दिनों की है जब भारत को आजाद हुए लगभग १० साल हो गए थे, आजादी का जश्न अभी तक लोगों के दिलों में छाया हुआ था। उस समय देल्हुआ का अस्तित्व न के बराबर था। जैसा की माना जाता है पुराने समय में कोई भी शहर हो या गाँव,
उनको नदी के किनारे बसाया जाता था ताकि काफी जरूरतें नदी से पूरी हो जाए ठीक उसी तरह देल्हुआ गाँव भी सकरी नदी के किनारे बसा था। गावँ के नाम पर 10से 15 फुश की झोपड़ियां थी। उस समय खेत ही जीवन यापन का जरिया था।
सकरी नदी उस समय भी ऐसे ही बहती थी जैसे की वर्तमान में बह रही है। सकरी नदी के किनारे की मिट्टी बड़ी उपजाऊ पहले भी थी और आज भी है, इसलिए उस समय भी खाने योग्य फसल हो जाती थी। काफी सालों तक जिंदगी बसर ऐसे ही होता रहा। उस समय बस दो वक़्त का खाना मिल जाए यही जिंदगी होती थी। दूर दूर तक वीरान और जंगल ही दिखाई देते थे। दूर दूर तक कोई गाँव नहीं था।
उस समय शहर के नाम पर सिर्फ नवादा होता था जहां जाना आसान नहीं था। और जाए भी क्यों क्योंकि शहरों में जाने के लिए पैसा चाहिए और वो किसी के पास नहीं था, परंतु कभी अगर ज्यादा ही जरुरत पड़ जाए तो यहाँ के लोग पैदल जाया करते थे। गावँ से जाने और वापस आने में दो दिन तक का समय लग जाता था।
सकरी नदी आज की तरह पहले भी बरसाती ही नदी थी। हर साल बरसात में बाढ़ आना तय था परन्तु गाँव के लोगो को इससे फायदा नुकसान दोनों होता था। इस बाढ़ में इमारती लकड़ियां बह के आती थी तो उनको इकठ्ठा कर लिया जाता था और पूरे साल तक प्रयोग करते थे। नुकसान ये था की नदी फश्लें भी बहाकर ले जाती थी और जहरीले सांप छोड़ जाती थी। ऐसे ही हर साल होता चला आ रहा था। उस साल भी बरसाती रात थी सकरी नदी में बाढ़ आया हुआ था। पानी का स्तर अधिकतम सीमा तक आ चूका था और अब इसे कम होना था जैसा की हर साल होता चला आ रहा था।
गोविंदपुर से इस बाजार की दुरी लगभग 8km है। एक तरफ सकरी नदी और दूसरी तरफ पहाड़ों की लंबी स्रिंखलाएँ हैं। यहाँ की जनसँख्या लगभग 2000 है। यहाँ की अधिकतर आबादी कृषि पर निर्भर है। यहां की मिट्टी बहुत ही उपजाऊ है। यहां धन और गेहूं के साथ - साथ शब्जियों और दाल की भी खेती होती है। यहाँ खेत छोटे छोटे हैं इसलिए यहाँ परंपरागत खेती होती है। यहाँ का मुख्य बाजार गोविंदपुर है। खरीदारी और बिक्री के लिए यहाँ के लोग गोविंदपुर बाजार ही जाते
देल्हुआ का इतिहास स्वर्गीय चेतु राम जी की जुबानी......
बात उन दिनों की है जब भारत को आजाद हुए लगभग १० साल हो गए थे, आजादी का जश्न अभी तक लोगों के दिलों में छाया हुआ था। उस समय देल्हुआ का अस्तित्व न के बराबर था। जैसा की माना जाता है पुराने समय में कोई भी शहर हो या गाँव,
उनको नदी के किनारे बसाया जाता था ताकि काफी जरूरतें नदी से पूरी हो जाए ठीक उसी तरह देल्हुआ गाँव भी सकरी नदी के किनारे बसा था। गावँ के नाम पर 10से 15 फुश की झोपड़ियां थी। उस समय खेत ही जीवन यापन का जरिया था।
सकरी नदी उस समय भी ऐसे ही बहती थी जैसे की वर्तमान में बह रही है। सकरी नदी के किनारे की मिट्टी बड़ी उपजाऊ पहले भी थी और आज भी है, इसलिए उस समय भी खाने योग्य फसल हो जाती थी। काफी सालों तक जिंदगी बसर ऐसे ही होता रहा। उस समय बस दो वक़्त का खाना मिल जाए यही जिंदगी होती थी। दूर दूर तक वीरान और जंगल ही दिखाई देते थे। दूर दूर तक कोई गाँव नहीं था।
उस समय शहर के नाम पर सिर्फ नवादा होता था जहां जाना आसान नहीं था। और जाए भी क्यों क्योंकि शहरों में जाने के लिए पैसा चाहिए और वो किसी के पास नहीं था, परंतु कभी अगर ज्यादा ही जरुरत पड़ जाए तो यहाँ के लोग पैदल जाया करते थे। गावँ से जाने और वापस आने में दो दिन तक का समय लग जाता था।
सकरी नदी आज की तरह पहले भी बरसाती ही नदी थी। हर साल बरसात में बाढ़ आना तय था परन्तु गाँव के लोगो को इससे फायदा नुकसान दोनों होता था। इस बाढ़ में इमारती लकड़ियां बह के आती थी तो उनको इकठ्ठा कर लिया जाता था और पूरे साल तक प्रयोग करते थे। नुकसान ये था की नदी फश्लें भी बहाकर ले जाती थी और जहरीले सांप छोड़ जाती थी। ऐसे ही हर साल होता चला आ रहा था। उस साल भी बरसाती रात थी सकरी नदी में बाढ़ आया हुआ था। पानी का स्तर अधिकतम सीमा तक आ चूका था और अब इसे कम होना था जैसा की हर साल होता चला आ रहा था।
पर
इस साल नदी का मिजाज कुछ बदला-बदला सा लग रहा था। पानी का स्तर कम होने के बजाए बढ़ता चला जा रहा था। गाँव के सभी लोगों की बेचैनी बढ़ती जा रही थी। पर इस बार यह नदी रुकने वाली नहीं थी, पानी का स्तर और अधिक बढ़ता जा रहा था। अब इस गाँव में लोग ज्यादा देरी तक नहीं रुक सकते थे। क्योंकि पानी अब घरों में भी आ चूका था। कुछ ही समय में त्राहि त्राहि मचने लगी। शोर बढ़ने लगा। भगदड़ मचने लगी। क्योंकि थोड़ा ही समय था गाँव के डूबने में तो जो हो सका सबने पोटली में बांधा और वहां से चलने लगे। लगभग आधे घंटे में सभी रोते बिलखते देल्हुआ पहाड़ी की तलहटी में रुके और
वही रात गुजारने का फैसला लिया। जो बचा हुआ खाना लाए थे वो बच्चों को खिलाया गया। सभी लोग सारी रात जागते रहे और भगवान से मनाते रहे की हमारा घर सही सलामत हो। जैसे ही सुबह हुई सब की निगाहें अपने घरों पर थी जो की अब दिखाई देना बंद हो चूका था। सभी भागे भागे उस जगह गए जहां देल्हुआ गाँव था, सबकी ऑंखें नम थी क्यों की सभी घर उस भयंकर बाढ़ में बह चुके थे। वहां बस घर होने के निशानियां थी। और उसमे भी जहरीले सांपों ने अपना बसेरा बना लिया था।
इस साल नदी का मिजाज कुछ बदला-बदला सा लग रहा था। पानी का स्तर कम होने के बजाए बढ़ता चला जा रहा था। गाँव के सभी लोगों की बेचैनी बढ़ती जा रही थी। पर इस बार यह नदी रुकने वाली नहीं थी, पानी का स्तर और अधिक बढ़ता जा रहा था। अब इस गाँव में लोग ज्यादा देरी तक नहीं रुक सकते थे। क्योंकि पानी अब घरों में भी आ चूका था। कुछ ही समय में त्राहि त्राहि मचने लगी। शोर बढ़ने लगा। भगदड़ मचने लगी। क्योंकि थोड़ा ही समय था गाँव के डूबने में तो जो हो सका सबने पोटली में बांधा और वहां से चलने लगे। लगभग आधे घंटे में सभी रोते बिलखते देल्हुआ पहाड़ी की तलहटी में रुके और
वही रात गुजारने का फैसला लिया। जो बचा हुआ खाना लाए थे वो बच्चों को खिलाया गया। सभी लोग सारी रात जागते रहे और भगवान से मनाते रहे की हमारा घर सही सलामत हो। जैसे ही सुबह हुई सब की निगाहें अपने घरों पर थी जो की अब दिखाई देना बंद हो चूका था। सभी भागे भागे उस जगह गए जहां देल्हुआ गाँव था, सबकी ऑंखें नम थी क्यों की सभी घर उस भयंकर बाढ़ में बह चुके थे। वहां बस घर होने के निशानियां थी। और उसमे भी जहरीले सांपों ने अपना बसेरा बना लिया था।
अब देल्हुआ कहां बसाया जाए उस जगह को ढूँढना था, तो कुछ लोगों को नयी जगह ढूंढने का काम दिया गया। जहाँ अभी देल्हुआ गाँव है वहां उस समय खतरनाक जंगल था। जिसमे शेर से लेकर हर तरह के जंगली जानवर रहते थे। शाम तक वो सभी लोग जो जगह ढूंढने गए थे वो वापस आ गए और उन्होंने बताया की यहाँ से एक कोष की दुरी पर बिच जंगल में एक समतल इलाका है निशानी के तौर पर वहां एक पुराना करम का पेड़ है जो काफी बड़ा है। वहां जंगली काँटों की झाड़ियां हैं, अगर हम उन्हें साफ कर देंगे तो वहां हम अपने रहने के लिए घर बना सकते हैं।
देल्हुआ गाँव में उस समय काफी तरह के लोग थे कोई मेहनती तो कोई बुद्धिमान तो कोई बलवान, उन्ही लोगों में से एक थे श्री चेतु राम जी,
जो बुद्धिमान होने के साथ साथ एक स्वतंत्रता सेनानी भी थे. उनकी बातों में एक दम था. जो वो कहते थे गाँव के लोग मानते भी थे. उनका रुतबा गावँ में आदर के योग्य था. जब सकरी नदी की बाढ़ में पुराने देल्हुआ का अंत हुआ और नए देल्हुआ की शुरुआत हुई तो उस समय गाँव के लोगों के सामने मुख्य समस्या खाने की थी. बाढ़ में सब कुछ बह चूका था, खाने के लिए जंगली बेर के अलावा कुछ भी नहीं था. उस समय यही श्री चेतु राम जी पैदल नवादा जिला गए थे और एक दिन बाद वहां से कलेक्टर के आदेश से बैल गाड़ी पर अनाज लदवाकर ले थे. उसी अनाज के बलबूते देल्हुआ फिर से खड़ा हुआ और आज यहाँ तक पंहुचा.
देल्हुआ गाँव में उस समय काफी तरह के लोग थे कोई मेहनती तो कोई बुद्धिमान तो कोई बलवान, उन्ही लोगों में से एक थे श्री चेतु राम जी,
जो बुद्धिमान होने के साथ साथ एक स्वतंत्रता सेनानी भी थे. उनकी बातों में एक दम था. जो वो कहते थे गाँव के लोग मानते भी थे. उनका रुतबा गावँ में आदर के योग्य था. जब सकरी नदी की बाढ़ में पुराने देल्हुआ का अंत हुआ और नए देल्हुआ की शुरुआत हुई तो उस समय गाँव के लोगों के सामने मुख्य समस्या खाने की थी. बाढ़ में सब कुछ बह चूका था, खाने के लिए जंगली बेर के अलावा कुछ भी नहीं था. उस समय यही श्री चेतु राम जी पैदल नवादा जिला गए थे और एक दिन बाद वहां से कलेक्टर के आदेश से बैल गाड़ी पर अनाज लदवाकर ले थे. उसी अनाज के बलबूते देल्हुआ फिर से खड़ा हुआ और आज यहाँ तक पंहुचा.
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