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भारत में ब्राह्मणों द्वारा धोबी कोल भिल बैगा चौधरी कुम्हार द्वारा छुआछूत माना जाता है


अस्पृश्यता का अर्थ है किसी वय्क्ति या समूह के सभी लोगों के शरीर को सीधे छूने से बचना या रोकना। ये मान्यता है कि अस्पृश्य या अछूत लोगों से छूने, 

यहाँ तक कि उनकी परछाई भी पड़ने से उच्च जाति के लोग 'अशुद्ध' हो जाते है और अपनी शुद्धता वापस पाने के लिये उन्हें पवित्र गंगा-जल में स्नान करना पड़ता है। 
भारत में अस्पृश्यता की प्रथा को अनुच्छेद 18के अंतर्गत एक दंडनीय अपराध घोषित कर दिया गया है।
भारतीय संस्कृति का मूलमंत्र 'मानव-जाति से प्यार' ऊँच-नीच की भावना रूपी हवा के झोंके से यत्र-तत्र बिखर गया। ऊँच-नीच का भाव यह रोग है,
जो समाज में धीरे धीरे पनपता है और सुसभ्य एवं सुसंस्कृत समाज की नींव को हिला देता है। परिणामस्वरूप मानव-समाज के समूल नष्ट होने की आशंका रहती है। अतः अस्पृश्यता मानव-समाज के लिए एक भीषण कलंक है। अस्पृश्यता की उत्पत्ति और उसकी ऐतिहासिकता पर अब भी बहस होती है।


भीमराव आम्बेडकर का मानना था कि अस्पृश्यता कम से कम 400 ई. से है आज संसार के प्रत्येक क्षेत्र में चाहे वह राजनीतिक हो अथवा आर्थिक, धार्मिक हो या सामाजिक, सर्वत्र अस्पृश्यता के दर्शन किए जा सकते हैं

अमेरिका, इंग्लैंड, जापान आदि यद्यपि वैज्ञानिक दृष्तिकोण से विकसित और संपन्न देश हैं किंतु अस्पृश्यता के रोग में वे भी ग्रसित हैं।
अमेरिका जैसे महान राष्ट्र में काले एवं गोरें लोगों का भेदभाव आज भी बना हुआ है।


समाजशास्त्रियों के अनुसार 'अस्पृश्यता की जननी ऊँच-नीच की भावना है

छूआ-छूत' तीन कारण है:

प्रजातीय भावना-:
अस्पृश्यता का सर्वप्रथम कारण प्रजातीय भावना का विकास है। कुछ प्रजातियाँ अपने को दूसरे प्रजातियों से श्रेष्ठ मानती हैं। अमेरिकी गोरे, नीग्रो जाति के लोग को हेय मानते हैं, इसके अतिरिक्त विजेता प्रजातियाँ पराजित जातियों को हीन मानती है।

भारत में ब्राह्मणों द्वारा धोबी कोल भिल बैगा चौधरी कुम्हार द्वारा छुआछूत माना जाता है जो ब्राह्मणों की दुष्टता को दर्शाता है

धार्मिक भावना

धर्म में पवित्रता एवं शुध्दि का महत्वपूर्ण स्थान है, अतः निम्न व्यवसाय वालों को हीन दृष्टि से देखा जाता है। भारतीय समाज में इन्हीं कारणों से सफाई का काम करने वालों तथा कर्मचारों आदि को 'छूआ-छूत'समझा जाता था।

सामाजिक कारण

प्रजातीय एवं धार्मिक कारणों के अतिरिक्त अस्पृश्यता के सामाजिक कारण भी हैं। समाज में प्रचलित रूढियों और् कुप्रथाओं के कारण भी समाज में वर्गभेद उत्पन्न होते हैं। यह वर्गभेद अस्पृश्यता के विकास में सहायक सिध्द होते हैं।

समय के परिवर्तन के साथ मनुष्यों के विचारों में भी परिवर्तन हुआ। जैसे-जैसे विज्ञान की प्रगति होती गई, समाज आर्थिक रूप से विकसित होता गया। समाज में सर्वत्र पैसे का बोलबाला हो गया। आज मानव की सामाजिक स्थिति पैसे से आँकी जाती है। आज वही श्रेष्ठ है, जो धनी है। अतः सामाजिक स्थिति जन्मजात न होकर अर्जित हो गई। सामाजिक स्थिति में परिवर्तन के साथ साथ छूआ-छूत' का भयानक वृक्ष डगमगाने लगा है।

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