इंटरनेट का तकनीकी विकास
पिछले 18 सालों से इंटरनेट सहकारी पक्षों के बीच सहयोगी भूमिका निभाता चला आ रहा है। इंटरनेट के संचालन में कुछ बातें बहुत जरूरी हैं। इनमे से एक है प्रणाली को संचालित करने वाले प्रोटोकोल का निर्धारण। प्रोटोकोल का मूल विकास डीएआरपीए अनुंसधान कार्यक्रम में किया गया किन्तु पिछले 5-6 सालों में यह कार्य विभिन्न देशों की सरकारी एजेंसियों, उद्योगों व शैक्षिक समुदाय की सहायता से विस्तृत रूप से किया जाने लगा है। इंटरनेट समुदाय के सही मार्गदर्शन और टीसीपी/आईपी के समुचित विकास के लिये 1983 में अमरीका में इंटरनेट एक्टिविटीज बोर्ड का गठन किया गया।
इंटरनेट इंजीनियरिंग टास्क फोर्स तथा इंटरनेट रिसर्च टास्क फोर्स इसके दो महत्त्वपूर्ण अंग है। इंजीनियरिंग टास्क फोर्स का काम टीसीपी/आईपी प्रोटोकोल के विकास के साथ साथ अन्य प्रोटोकोल आदि का इंटरनेट में समावेश करना है। विभिन्न सरकारी एजन्सियों के सहयोग के द्वारा इंटरनेट एक्टीविटीज बोर्ड के मार्गदर्शन में नेटवर्किंग की नई उन्नतिशील परिकल्पनाओं के विकास की जिम्मेदारी रिसर्च टास्क फोर्स की है जिसमें वह लगातार प्रयत्नशील रहता है।
इस बोर्ड व टास्क फोर्स के नियमित संचालन के लिये सचिवालय का भी गठन किया गया है। इंजीनियरिंग टास्क फोर्स की मीटिंग औपचारिक रूप से चार महीने में एक बार होती ही है। इसके 50 कार्यकारी दल समय-समय पर 'ई-मेल' टेलीकान्फ्रेंसिग व रू-बरू मीटिगों द्वारा प्रगति की समीक्षा करते हैं। बोर्ड की मीटिंग भी तीन-तीन महीने में वीडियो कान्फ्रेसिंग के माध्यम से और अनेेकों बार टेलीफोन, ई-मेल अथवा कम्प्यूटर कान्फ्रेसों के जरिये होती रहती है।
बोर्ड के दो और महत्त्वपूर्ण कार्य हैं - इंटरनेट संबन्धी दस्तावेजों का प्रकाशन और प्रोटोकोल संचालन के लिये आवश्यक विभिन्न आइडेन्टिफायर्स की रिकार्डिग। इंटरनेट के क्रमिक विकास के दौरान इसके प्रोटोकोल व संचालन के अन्य पक्षों को पहले 'इंटरनेट एक्सपेरिमेंट नोट्स´ और बाद में `रिक्वेस्टस फॉर कमेंन्ट्स' नामक दस्तावेजों के रूप में संग्रहीत किये जाते हैं। दस्तावेज इंटरनेट विषयक सूचना के मुख्य पुरालेख बन गये हैं।
आईडेन्टिफायर्स की रिकार्डिग 'इंटरनेट एसाइन्ड नम्बर्स ऑथोरिटी´ उपलब्ध कराती है जिसने यह जिम्मेदारी एक 'इंटरनेट रजिस्ट्री' (आई आर) को दे रखी है। 'इन्टरनेट रजिस्ट्री' ही डोमेन नेम सिस्टम -डी एन एस- रूट डाटाबेस का केन्द्रीय रखरखाव करती है जिसके द्वारा डाटा अन्य सहायक 'डी एन एस सर्वर्स´ को वितरित किया जाता है। इस प्रकार वितरित डाटाबेस का इस्तेमाल 'होस्ट' तथा 'नेटवर्क'नामों को उनके 'एडडेसिज' से कनैक्ट करने में किया जाता है। उच्चस्तरीय टीसीपी/आईपी प्रोटोकोल के संचालन में यह एक महत्त्वपूर्ण कड़ी है, जिसमें ई-मेल भी शामिल है। उपभोक्ताओं को दस्तावेजों, मार्गदर्शन व सलाह-सहायता उपलब्ध कराने के लिये समूचे इंटरनेट पर नेटवर्क इन्फोरमेशन सेन्टर्स (सूचना केन्द्र)- स्थित हैं। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर जैसे-जैसे इंटरनेट का विकास हो रहा है ऐसे सूचना केन्द्रों की उच्चस्तरीय कार्यविधि की आवश्यकता भी बढ़ती जाती है।
आरम्भ में इंटरनेट उपभोगकर्ता समुदाय में जहां केवल कम्प्यूटर सांइस तथा इंजीनियरिंग श्रेणी के लोग ही हुआ करते थे, आज इसके उपभोक्ताओं में विज्ञान, कला, संस्कृति, सरकारी/गैर सरकारी प्रशासन व सैन्य-जगत के ही नहीं बल्कि कृषि एवं व्यापार जगत के लोग भी शामिल हो रहे हैं। ऐसा लगता है कि अब दुनिया के किसी भी हिस्से में रहने वाला कोई भी व्यक्ति इंटरनेट के बिना अपने अस्तित्व की कल्पना कर सके।
पिछले 18 सालों से इंटरनेट सहकारी पक्षों के बीच सहयोगी भूमिका निभाता चला आ रहा है। इंटरनेट के संचालन में कुछ बातें बहुत जरूरी हैं। इनमे से एक है प्रणाली को संचालित करने वाले प्रोटोकोल का निर्धारण। प्रोटोकोल का मूल विकास डीएआरपीए अनुंसधान कार्यक्रम में किया गया किन्तु पिछले 5-6 सालों में यह कार्य विभिन्न देशों की सरकारी एजेंसियों, उद्योगों व शैक्षिक समुदाय की सहायता से विस्तृत रूप से किया जाने लगा है। इंटरनेट समुदाय के सही मार्गदर्शन और टीसीपी/आईपी के समुचित विकास के लिये 1983 में अमरीका में इंटरनेट एक्टिविटीज बोर्ड का गठन किया गया।
इंटरनेट इंजीनियरिंग टास्क फोर्स तथा इंटरनेट रिसर्च टास्क फोर्स इसके दो महत्त्वपूर्ण अंग है। इंजीनियरिंग टास्क फोर्स का काम टीसीपी/आईपी प्रोटोकोल के विकास के साथ साथ अन्य प्रोटोकोल आदि का इंटरनेट में समावेश करना है। विभिन्न सरकारी एजन्सियों के सहयोग के द्वारा इंटरनेट एक्टीविटीज बोर्ड के मार्गदर्शन में नेटवर्किंग की नई उन्नतिशील परिकल्पनाओं के विकास की जिम्मेदारी रिसर्च टास्क फोर्स की है जिसमें वह लगातार प्रयत्नशील रहता है।
इस बोर्ड व टास्क फोर्स के नियमित संचालन के लिये सचिवालय का भी गठन किया गया है। इंजीनियरिंग टास्क फोर्स की मीटिंग औपचारिक रूप से चार महीने में एक बार होती ही है। इसके 50 कार्यकारी दल समय-समय पर 'ई-मेल' टेलीकान्फ्रेंसिग व रू-बरू मीटिगों द्वारा प्रगति की समीक्षा करते हैं। बोर्ड की मीटिंग भी तीन-तीन महीने में वीडियो कान्फ्रेसिंग के माध्यम से और अनेेकों बार टेलीफोन, ई-मेल अथवा कम्प्यूटर कान्फ्रेसों के जरिये होती रहती है।
बोर्ड के दो और महत्त्वपूर्ण कार्य हैं - इंटरनेट संबन्धी दस्तावेजों का प्रकाशन और प्रोटोकोल संचालन के लिये आवश्यक विभिन्न आइडेन्टिफायर्स की रिकार्डिग। इंटरनेट के क्रमिक विकास के दौरान इसके प्रोटोकोल व संचालन के अन्य पक्षों को पहले 'इंटरनेट एक्सपेरिमेंट नोट्स´ और बाद में `रिक्वेस्टस फॉर कमेंन्ट्स' नामक दस्तावेजों के रूप में संग्रहीत किये जाते हैं। दस्तावेज इंटरनेट विषयक सूचना के मुख्य पुरालेख बन गये हैं।
आईडेन्टिफायर्स की रिकार्डिग 'इंटरनेट एसाइन्ड नम्बर्स ऑथोरिटी´ उपलब्ध कराती है जिसने यह जिम्मेदारी एक 'इंटरनेट रजिस्ट्री' (आई आर) को दे रखी है। 'इन्टरनेट रजिस्ट्री' ही डोमेन नेम सिस्टम -डी एन एस- रूट डाटाबेस का केन्द्रीय रखरखाव करती है जिसके द्वारा डाटा अन्य सहायक 'डी एन एस सर्वर्स´ को वितरित किया जाता है। इस प्रकार वितरित डाटाबेस का इस्तेमाल 'होस्ट' तथा 'नेटवर्क'नामों को उनके 'एडडेसिज' से कनैक्ट करने में किया जाता है। उच्चस्तरीय टीसीपी/आईपी प्रोटोकोल के संचालन में यह एक महत्त्वपूर्ण कड़ी है, जिसमें ई-मेल भी शामिल है। उपभोक्ताओं को दस्तावेजों, मार्गदर्शन व सलाह-सहायता उपलब्ध कराने के लिये समूचे इंटरनेट पर नेटवर्क इन्फोरमेशन सेन्टर्स (सूचना केन्द्र)- स्थित हैं। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर जैसे-जैसे इंटरनेट का विकास हो रहा है ऐसे सूचना केन्द्रों की उच्चस्तरीय कार्यविधि की आवश्यकता भी बढ़ती जाती है।
आरम्भ में इंटरनेट उपभोगकर्ता समुदाय में जहां केवल कम्प्यूटर सांइस तथा इंजीनियरिंग श्रेणी के लोग ही हुआ करते थे, आज इसके उपभोक्ताओं में विज्ञान, कला, संस्कृति, सरकारी/गैर सरकारी प्रशासन व सैन्य-जगत के ही नहीं बल्कि कृषि एवं व्यापार जगत के लोग भी शामिल हो रहे हैं। ऐसा लगता है कि अब दुनिया के किसी भी हिस्से में रहने वाला कोई भी व्यक्ति इंटरनेट के बिना अपने अस्तित्व की कल्पना कर सके।
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