माँ मुझे छुपा ले
माँ मुझे छुपा ले
अपने आँचल मेंये दुनिया बहुत बुरी है
घूरती है मुझे |
अपनी नंगी - नंगी आँखोँ से
और कहती है
कि तू बुरी है
यौवनावस्था जब से आयी है||
ये कैसी विकट परिस्थिति लायी है
हर कोई मसलने की ताक
में रहता है
कहता नहीं कुछ |||
पर उनकी
आँखों से दर्शता है
बोलता नहीं कुछ
पर मन में बात रहती है ||||
डर लगता है उन आँखों से
जो इस तन को ताका करते है
राह तका करते है
राहों में कि वो अब आएगी
हमारी हुस्न देखने की चाह को
फिर से मिटाएगी
कैसे निकलूँ अब घर से
इस तन के साथ
जो प्रदर्शन की वस्तु है
मुझे निहारता हर वो बन्दा
नीचे से ऊपर तक
जिसे मैं नही मेरी जवानी अच्छी लगती है
माँ मुझे छुपा ले
अपनी आँचल में
मुझे ये दुनिया बहुत
बुरी लगती है ..
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