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माँ आज जो कुछ भी हूँ सब तेरी बदौलत हूँ


मुझे खुद से रूबरूह कराया तूने
भूखे रहकर भी निवाला खिलाया तूने
जब कभी धूप पड़ी मुझ पर तो छांव बनकर सहलाया तूने, अनजान राहों में कांटों के बीच फूलो की राह बनकर
मुझे बचाया तूने ,

दुख का साया भी ना पड़े मुझ पर
ऐसे सुख के बादल वर्साय तूने
मां आज जो कुछ हूं तेरी बदौलत हूं
तूने ही तो समहलना सिखाया मुझे

जब पगडंडी किया करता कभी गिरता कभी सम्हलता
पैरों पर खड़ा होकर चलना सिखाया तूने
मां आज जो कुछ भी हूं तेरी बदौलत हूं
तूने ही तो चलना सिखाया मुझे

दहकती धूप में बरगद की छांव बनी
पैरों के नीचे जमीन
सिर के ऊपर आसमान बनी
तुफानों से बचाने के लिए चट़टान बनी

और ना जाने कितने रूप लेके मुझे बचाया तूने
प्यासा होने पर मुझे पानी पिलाया ,
भूख से तिलमिलाता देख
अपना निवाला छोड़ मुझे स्तनपान कराया ,

बहता जाऊं , नदी की धार की भांति
ऐसा ज्ञान का प्रवाह मुझ में कराया तूने
कृति फैले आकाश की भांति
लोगों को राह दिखाऊं वैसे दीपक का ज्ञान कराया तूने

मां आज जो कुछ तेरी बदौलत हूँ
बोलना भी तो सिखाया तूने
बरगद की भांति लोगों को संरक्षण दूं ।
वैसे संस्कार से दिये तूने

संसार में सही क्या है गलत क्या है
फर्क सिखाया तूने
मां आज जो कुछ भी हूं
वह सब तेरी बदौलत हूँ

तूने ही तो प्यारा नाम देकर
एक पहचान दिया मुझे
मां आज जो कुछ भी हूं


वह सब तेरी बदौलत हूँ

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