भारतीय समाज(Society of India )
भारतीय समाज का एक समाजशास्त्रीय दृष्टिकोणीय
भारतीय समाज विविधता वाला समाज है जहाँ विभिन्न जाति , धर्म , सम्प्रदाय , के मानने वाले लोग निवास करते है जिनकी एक अलग भाषा , खानपान , भेषभूषा होती है या कहे भारत विभिन्न रंग बिरंगे - फूलो के गुलदस्ते के समान है | यह भी कह सकते है की विभिन्न संस्कृतियों का जाल है | बदलते दौर में और समय की बढती हुई मांग नए इसमें जरुर कुछ निचिलापन लाया है | भारतीय समाज को समझने से पहले यह जरुरी है की हम यह जाने की आखिर समाज क्या होता है जिसकी क्या विशेषता होती है | तथा एक संरचना की संरचना कैसे दुसरे समाज से अलग होती है |और हम जिस प्रकार के समूह को समाज कह सकते है |क्या व्यक्ति के ही समूह का झुण्ड समाज है | या यह सम्माज से भिन्न होते है |
समाज क्या है ?
हम आप समान्यत : समाज व्यक्ति के झुण्ड को मान बैठते है जो की वास्तव में समाज नही है | यदि समाज को समझना है तो सर्वप्रथम उसके अंदर छुपे भाव को समझना होगा |
समाज के निर्माण के लिए आवश्यक घटक :
- दो या दो से अधिक व्यक्ति का होना अति आवश्यक है
- उन व्यक्ति के बीच हम की भावना दूसरा सबसे बड़ा गुण है | हम की भावना का तात्पर्य " We Feeling" है |
- समाज सम्बन्धो का जाल होता है |जो अमूर्त होते है| इसका मतबल दृश्यपरक नही होते है | अर्थात् उसे देखा नही जा सकता |
- हम किसी भी समूह को समाज की संज्ञा नही दे सकते क्योकि समाज का मानना है की उनमे हम की भावना का होना अति आवश्यक है |
परिभाषा :
परिभाषा की दृष्टि से देखा जाए तो समाज का निर्माण उस अवस्था में होता है जब दो या दो से अधिक व्यक्ति आपस में मिलते है तथा किसी प्रकार का आपस में सम्बन्ध स्थापित करते है तब जाकर समाज का निर्माण होता है |
नोट - यहाँ सम्बन्ध का तात्पर्य भाई - भतीजा , मित्र इत्यादि है |
विविधता वाला समाज -
भारतीय समाज के समझने के लिए भारतीय अधिक्षेत्र में निवास करने वाले १२१ लोगो के जीवन को देखना एक पहलु पर नजर रखने की जरूरत है - तभी जाकर हम भारतीय समाज को समझ पाएगे क्योकि भारतीय ३२ लाख ६३ हजार वर्गकिलोमीटर में फैले लोगो की दस्ता है जिसके तहत भारत के कुल २९ राज्य और ७ संघशासित प्रदेश आते है | जिनमे कुछ अच्छी बाते है तो कुछ बुरी भी जिसको सुविधा की दृष्टि से कुछ भागो में विभक्त करके समझ जा सकता है -
स्तरीकरण पर आधारित समाज -
भारतीय समाज की संरचना बहुत जटिल है जहाँ विभन्न मत मतान्तर , भाषा , धर्म , संस्कृति के मानने वाले लोग निवास करते है | मुख्यत: भारतीय समाज को स्तरीयकरण पर आधारित समाज बताया गया है |
जहाँ के समाज कुल चार वर्ण में विभक्त किया गया है -
- ब्राहमण
- क्षत्रिय
- वैश्य
- शुद्र
भारतीय समाज में ब्राहमण को सर्वश्रेण दर्जा प्रदान किया गया है | मनुस्मृति के मुताबिक ब्राहमण की उत्त्पति ब्रह्मा के मुख से हुई है जिसका कार्य था लोगो को ज्ञान देना ऐसा बताया जाता है कि जिस प्रकार मुख का कार्य होता है बोलता क्योकि ब्राहमण की उत्त्पति ब्रह्मा के मुख से हुई मुख का कार्य होता है बोलना इसलिए इसको व्ही कार्य सौप दिया गया |
दुसरे पायदान पर समाज में क्षत्रिय को रखा गया है क्योकि ब्रहम के भुजाओ से क्षत्रिय की उत्त्पति हुई और भुजाओ का कार्य होता है लोगो की रक्षा करना इस हेतु इसको यह उत्तरदायित्व सौप दिया गया |
तीसरे पायदान पर आते है वैश्य जिनकी उत्त्पति ब्रम्हा के उदर से हुई जिसका कार्य होता है भरना लिहाजन इनको लोगो के जीवन पर्जन का दायित्व सौप दिया गया |
चौथे पायदान पर शुद्र को रखा गया जिसकी उत्त्पति ब्रम्हा के तराउ से बताई गई है जिसकी कार्य होता है पुरे शरीर भर उठाना इस लिहाज से इसको तीनो वर्णों की सेवा करने का कार्य दे दिया गया |
जाति व्यवस्था पर आधारित समाज -
भारतीय समाज मुख्यतः जाति गत समाज है जहाँ की प्रकार की जातियां पाई जाती है जो पूर्णत: स्तरीयकरण पर आधारित है जिसका आधार वर्ण व्यवस्था को बताया जाता है - ऐसा बताया जाता है की पहले के काल खंडो में यह कर्म पर आधारित थी बाद के वर्षो में यह जन्म पर आधारित हो गई यही से जाति व्यवस्था की नीव पड़ी - जिनके समाजिक - आर्थित स्तिथिय को ध्यान में रखते हुए इसको कुल ४ वर्ग में विभक्त किया जाता है - जाति के लिए एक समान्य सी कहावत प्रचलित है जाति जो कभी नही जाती |विख्यात समाज शात्रीय मजुमदार ने कहा था कि " जाति एक बन्द वर्ग है " अर्थात् किसी के एक जाति से दुसरे जाति में परिवर्तन नही किया जा सकता है | एक प्रसिध्द विध्दान निवासन ने कहा - संस्कृतिकरण की अवधारण में यह कहा है की कुछ परिस्कोथियों में ऐसा देखने को मिलता है कुछ नीचले तबके के लोग अपनी ऊँची जाति के लोगो की तरह जीवन बसर करने लगते है एक समय ऐसा आता है कि वह भी ऊँची जाति होने का दावा पेश करने लगते है |
भारतीय समाज मुख्यतः जाति गत समाज है जहाँ की प्रकार की जातियां पाई जाती है जो पूर्णत: स्तरीयकरण पर आधारित है जिसका आधार वर्ण व्यवस्था को बताया जाता है - ऐसा बताया जाता है की पहले के काल खंडो में यह कर्म पर आधारित थी बाद के वर्षो में यह जन्म पर आधारित हो गई यही से जाति व्यवस्था की नीव पड़ी - जिनके समाजिक - आर्थित स्तिथिय को ध्यान में रखते हुए इसको कुल ४ वर्ग में विभक्त किया जाता है - जाति के लिए एक समान्य सी कहावत प्रचलित है जाति जो कभी नही जाती |विख्यात समाज शात्रीय मजुमदार ने कहा था कि " जाति एक बन्द वर्ग है " अर्थात् किसी के एक जाति से दुसरे जाति में परिवर्तन नही किया जा सकता है | एक प्रसिध्द विध्दान निवासन ने कहा - संस्कृतिकरण की अवधारण में यह कहा है की कुछ परिस्कोथियों में ऐसा देखने को मिलता है कुछ नीचले तबके के लोग अपनी ऊँची जाति के लोगो की तरह जीवन बसर करने लगते है एक समय ऐसा आता है कि वह भी ऊँची जाति होने का दावा पेश करने लगते है |
समान्यत : भारत में जातियों को चार वर्गों में विभक्त किया गया है -
समान्य वर्ग - समान्य वर्ग उन व्यक्ति के जाति का समुह है जिसकी समाज के आर्थिक व सामाजिक स्थितीय अच्छी है |जिसकी तादात कुल हिन्दू जाति में १५ % बताई जाति है | जिनमे ब्राहमण , कुर्मी , राय इत्यादि है |
समान्यत : भारत में जातियों को चार वर्गों में विभक्त किया गया है -
पिछड़े वर्ग - पिछड़े वर्ग में समाज के उन जाति के लोगो को रखा गया है जो समाजिक एवं आर्थिक रूप से पिछड़ गए थे |
अनुसूचित जाति - अनुसूचित जाति के वर्ग के तहत उन जाति के लोगो को रखा गया जिसको समाज में छुना भी पाप माना जाता था |
अनुसूचित जनजाति - अनुसूचित जनजाति वर्ग के तहत उन जातियों के समूह को रखा गया जो जंगलो में रहा करते थे | , जो प्रकृति प्रिय थे |
गीता में कृष्ण कहते है "चारों वर्णों की उत्त्पति मेरे द्वारा ही की गई है "|
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